पत्रकारिता में नुकीले कांटे के वो जख्म
देश के अंदर पत्रकारिता में काम करना और अपने आपको सुरक्षित बनाये रखना भी एक टास्क बन गया हैं। सुबह शाम यह टास्क आँखों के सामने रहता है। कई लोगों के जीवन में पत्रकारिता एक उस नुकीले कांटे की तरह होता हैं, जो सारी ज़िंदगी अपना अहसास करवाता रहता हैं। जितना इस कांटे को निकालने की कोशिश करो, वह अंदर ही घुसता जाता हैं। सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार, माफिया की आपराधिक गतिविधियों और समाजिक बुराइयों के खिलाफ लिखने वाला पत्रकार इस कांटे से मिले जख्मों का आदी हो जाता हैं। उसको इस नुकीले कांटे के साथ ही जीवन गुजारना होगा। आज हालात ऐसे बन गये हैं, जो भ्रष्टाचारी सिस्टम के साथ समझौता कर लेता हैं। हम यह भी कह सकते हैं, जो इस सिस्टम के साथ समझौता करने की नीयत से ही पत्रकारिता के क्षेत्र में आया हैं। वह और उसका परिवार सुरक्षित भी हैं और आनंदमयी जीवन का हकदार बन जाता हैं। भारत देश में ऐसे पत्रकारों और लेखकों की भी कोई कमी नहीं हैं, जो अपने जख्मों को नासूर बनता देखते रहते हैं। लेकिन सिस्टम के भ्रष्टाचार, माफिया और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लिखना नहीं छोड़ते। इसका सबसे बड़ा कारण वह पत्रकारिता के जनून से ही नुकीले कांटे के जहर से फाइट करता आ रहा हैं। यह जनून ही उसको अब तक जिन्दा रखे हुये हैं। उसको पता लग चुका हैं कि यह ज़िंदगीभर चलने वाला हैं। अब तो वह इन जख्मों से ही एनर्जी पैदा कर बुराइयों के खिलाफ लिख रहा हैं। लेकिन जख्मों से ज्यादा दर्द देता हैं कि परिवार की सुरक्षा।
आप भी सोच रहे होंगे कि इसमें किस पहलू को उजागर करने की कोशिश की जा रही हैं। मैं बात कर रहा हूँ, एक ऐसे पत्रकार की। उसका पत्रकारिता क्षेत्र में करीब 24 साल पहले लिखने के शौंक से आना होता हैं। उसका शुरुवाती समय नार्मल न्यूज में ही लिखना होता हैं। वह हिंदी पत्रकारिता में धीरे-धीरे अपनी पकड़ बना रहा था। समय गुजरने के साथ पत्रकारिता एक जनून बन गया। अब उसके शब्दों ने सिस्टम के भ्रष्टाचार, माफिया और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया। वह लिखता गया समाचारपत्रों में उसके लेख प्रकाशित होते गये। उसे पता ही चला कब सिस्टम के भ्रष्टाचारी और माफिया के लोग दुश्मन बन गये। पत्रकारिता क्षेत्र में आने से पहले उसकी पहचान एक ताइक्वांडो खिलाड़ी और ट्रेनर के रूप में थी। उस दौरान हिंदी में अच्छी पकड़ होने के कारण ताइक्वांडो कैंप व चैंपियनशिप के लेख खुद ही लिख कर समाचारपत्रों को भेजना आदत थी। यही से उसका रुझान पत्रकारिता क्षेत्र की ओर हुआ। एक ताइक्वांडो खिलाड़ी होने के कारण सिस्टम के भ्रष्टाचारी और माफिया की धमकियां डर पैदा नहीं कर सकी। उसने धमकियों के बावजूद लिखना जारी रखा, इस दौरान । इस पत्रकार की शादी गई और बच्चे हो गये। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगे, धमकियों का सिलसिला भी बढ़ने लगा। इसी कारण पत्रकार अपने परिवार को कहीं घूमने या मूवी दिखाने नहीं जाता। उसको यही चिंता रहती कि कहीं परिवार को कोई नुकसान ना हो जाये। वह अपने आपको सुरक्षित कर रहा था। जब उसके बच्चे के साथ घटना घटित हुई और प्रशसान का सहयोग ना मिला। उसके मन में कई सवाल पैदा होने लगे। इन हालात को देखते हुये 45 किलोमीटर दूर किसी दूसरे शहर में जाकर काम शुरू कर दिया। लेकिन परिवार की सुरक्षा का सवाल वही खड़ा था। कुछ महीने सुबह घर से लुधियाना के लिये बस पकड़ता और रात को वापिस आ जाना। इस पत्रकार के साथ साल 2015 लुधियाना बस स्टैंड के पास घटना घटित होती हैं। अचानक 8-10 अनजान लोग उसे नुकसान पहुँचाने के लिये सामने आ जाते हैं। उनमें से एक व्यक्ति तेजधार लोहे की कोई बस्तु पत्रकार की ओर फैंकता हैं। जिससे पत्रकार के हाथ व बाएं टांग पर गहरी चोट लगती हैं, वह इस हमले से बचने के लिये छिपने लगता हैं। वह हमलावर लोग मारने देने की धमकियां देते हुये पत्रकार को ढ़ूढ़ने लगते हैं। उनके हाथों में हथियार देख वह किसी तरह भाग कर किसी बस में जा कर छिप जाता हैं। बस ड्राईवर की मदद से पत्रकार की जान बच पाई। यह हमला नशा माफिया के लोगों ने किया था। एक ओर घटना में इस पत्रकार के दाहिने हाथ की उंगलियों पर लोहे की स्टिक से वार किया गया था। जिसमें उसकी एक ऊँगली टूट गई और एक ऊँगली का नाख़ून पर चोट लगी थी। किसी कारण वंश अपना सही ढ़ंग से इलाज न करवाने के कारण उसके दाहिने हाथ की ऊँगली टेठी हो गई। इस कारण कभी कभी पत्रकार को लिखने और कम्प्यूटर पर काम करने दिक्कत आती हैं। उसने अब रूटीन में घर जाना बंद कर दिया। उसको डर था कि माफिया के लोग पीछा कर घर तक ना पहुंच जाये। वह 20 -25 दिन बाद अचानक अपने परिवार के पास पहुँचता और फिर घर से निकल जाता। पुलिस प्रशासन का तजुरबा सही नहीं रहा। उसका कारण यह था, वह काफी लंबे समय से पुलिस प्रशासन की कमियों के बारे में लिखता रहा हैं। एक दौर ऐसा भी आया कि उसके शब्दों ने उसका साथ देना बंद कर दिया। एक बार परिवार के सदस्यों ने देश छोड़ने की बात कही। पत्रकार का परिवार दहशत भरे माहौल में नहीं रहना चाहता था। वह चाहते थे पत्रकार सहित परिवार किसी अन्य देश में चले जाये। एक ताइक्वांडो खिलाड़ी होने के कारण पत्रकार को यह सिस्टम और माफिया से हार मान लेने जैसे महसूस हो रहा था। हँलाकि उसको अब परिवार को भी नुकसान पहुंचाने की धमकियां मिल रही थी। उस समय एक अजीब सा डर परिवार को महसूस होने लगा। अपनी जमीन जायदाद को एक दम से बेचना आसान नहीं लग रहा था। साल 2016 में परिवार ने फैंसला लिया कि धीरे-धीरे अपने देश से मूव हो जाये। जो पत्रकार पहले देश छोड़ने के हक में नहीं था। लेकिन परिवार को सुरक्षित करने के लिये सहमत हो गया। मौजूदा हालातों को देखते हुये अपने बेटे को विदेश भेज दिया। अपने आपको सुरक्षित करने के लिये सेल्फ डिफेंस बस्तुओं का प्रयोग करना शुरू कर दिया। उस पर पत्रकारिता को छोड़ने का कई बार दबाब बनाया गया, इस के बावजूद लिखना जारी रखा। एक समय ऐसा भी आया जब परिवार ने भी पत्रकारिता छोड़ देने की बात करने लगा। पत्रकार ने परिवार को समझाया कि यह उसके लिये ज्यादा खतरनाक होगा। आज राज्य में लोग डर के साये में ज़िंदगी व्यतीत कर रहे हैं। हर दूसरे दिन किसी ना किसी व्यक्ति को गोली मार कर हत्या कर दी जाती हैं। गैंगस्टर बिना किसी खौफ के धमकियां देते हैं और मौका मिलते ही एक बेकसूर व्यक्ति को सरेआम मार दिया जाता हैं। हाल ही में कुछ मामलों में सामने पुलिस और सिक्योरटी गार्ड होने के बावजूद गैंगस्टर गोलियां मार कर फरार हो जाते हैं। राज्य में आपराधिक घटनाये बढ़ने से हर कोई चिंतित हैं। पत्रकार आज भी सिस्टम के भ्रष्टाचार, माफिया और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लिख रहा हैं। वह मान चुका हैं, किसी ना किसी दिन उसकी भी हत्या कर दी जायेगी। उसका मानना हैं कि पत्रकारिता उन्हें अंदर से संतुष्टि देती है।