बिना पढ़ाई के फर्जी डिग्री से टीचर बना दिया जाता हैं
देश के हर कोने में माफिया के लोग मौजूद हैं। माफिया के जुड़े लोग कई अवैध धंधों को चला रहे हैं। मीडिया में अक्सर इस तरह के मामलों की खबरें पढ़ने को मिलती ही रहती हैं। वैसे तो माफिया के अवैध धंधों पर बहुत सी फिल्में भी बन चुकी हैं। इन फिल्में में माफिया के लोग किस तरह से काम करते हैं, माफिया के फैले नेटवर्क को भी दिखाया जाता हैं। हमारे देश में कई तरह के माफिया चल रहे हैं। जिनमें ड्रग माफिया, शराब माफिया, लैंड माफिया, नकली दवा माफिया, किडनी माफिया, मानव तस्करी माफिया, पेपर लीक माफिया, फर्जी डिग्री माफिया ऐसी बहुत लंबी लिस्ट हैं, जिस पर बात की जा सकती है। आज हम भी ऐसे ही किसी एक माफिया पर बात करने वाले हैं। हम बात करते हैं, देश में चल रहे फर्जी डिग्री बनाने वाले माफिया की। वैसे तो समय समय पर फर्जी डिग्री के समाचार मीडिया में प्रकाशित होते रहते हैं। फर्जी डिग्रियां बना कर माफिया से जुड़े लोग लाखों- करोड़ों रूपये का अवैध धंधा कर रहे हैं। हैरानी की बात तो यह हैं बिना पढ़ाई के किसी को डॉक्टर बनाया जा रहा हैं, किसी को बिना पड़े के इंजीनियर बनाया जा रहा हैं। इसी तरह कोई फर्जी डिग्री से टीचर बन जाता हैं। मीडिया में ऐसे कई मामले सामने आ जाते हैं जिनमें फर्जी डिग्री लेकर टीचर बना व्यक्ति कई साल बच्चों को पढ़ता रहता हैं। वह बड़े आराम से कई साल तक वकायदा वेतन भी लेता रहता हैं। फिर किसी दिन उसकी धोखेबाज़ी का पता चलता हैं। अब सोचने वाली बात यह हैं कि फर्जी डिग्री वाला टीचर कैसी शिक्षा बच्चों को दे रहा होगा।
हाल ही में साल 2024 के दिसंबर महीने में सिरसा के द्वारका पुरी में एक इंस्टीट्यूट में छापेमारी की गई। यहां पर छापा मारने वाली टीम को 11 राज्यों के 33 से ज्यादा शिक्षण संस्थानों के 100 सैट में बंद और 300 से ज्यादा फर्जी डिग्री और सर्टिफिकेट मिले थे। मीडिया से मिली जानकारी के मुताबिक इनमें अलग-अलग प्रदेशों की विश्वविद्यालय ओपन बोर्ड और शिक्षा बोर्ड के दसवीं, बारहवीं, बीए, बीएससी एग्रीकल्चर सहित अन्य कोर्स की मार्कशीट भी थीं। टीम को मौके पर फर्जी डिटेल मार्कशीट, कई मुहरे भी मिलीं। जिनमें हिमाचल, राजस्थान, पंजाब, यूपी, दिल्ली, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, बिहार के शिक्षा बोर्ड, पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय के यूजी, पीजी सहित अन्य कोर्स के सर्टिफिकेट मिले। इसी के साथ मामले में यह भी पता चला कि ये फर्जी डिग्री बनाने की एवज में 30 से 50 हजार रुपये लेते थे। पैसे लेने के बाद ये किसी भी यूनिवर्सिटी की डिग्री दे देते थे। इसके अलावा मार्कशीट बनाने के 10 से 15 हजार रुपये लिए जाते थे। आरोप है कि इंस्टीट्यूट की ओर से 500 से ज्यादा लोगों की फर्जी डिग्री बनाई जा चुकी है।
इसी तरह साल 2024 के नवंबर महीने में उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में छापा मारने वाली टीम ने विभिन्न विश्वविद्यालय की करीब 140 फर्जी मार्कशीट, डिग्री व अन्य शैक्षिक दस्तावेज बरामद किए थे। टीम ने फर्जी मार्कशीट बनाने के गिरोह का पर्दाफाश करते हुए मास्टरमाइंड सहित तीन लोगों को पकड़ा था। मीडिया में यह भी पता चला कि नकली मार्कशीट बनाने वाले मास्टर माइंड ने मार्कशीट बनाने की कला गूगल और यू ट्यूब से सीखी थी। इससे पहले मास्टरमाइंड ने निजी विश्वविद्यालयों की फ्रेंचाईजी लेकर काम शुरू किया था। इसके बाद उसने इतनी जानकारी जुटाई कि वह नकली मार्कशीट बनाने का मास्टर माइंड बन गया। मीडिया की खबरों के मुताबिक छापा मारने वाली टीम ने आरोपियों के कब्जे से सिक्किम मणिपाल विश्वविद्यालय की 122 फर्जी मार्कशीट व अन्य डिग्री, मोनाड विश्वविद्यालय हापुड़ की आठ, क्लोरस विश्वविद्यालय गुजरात की तीन, सीसीएसयू की एक, सनराइज विश्वविद्यालय अलवर की एलएलएम की एक डिग्री, जवाहर लाल विश्वविद्यालय की तीन, छत्रपति शाहुजी महाराज विश्वविद्यालय की पीएचडी की एक, श्री सत्या सांई विश्वविद्यालय सिहोर की एक डिग्री, दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय शिक्षा संस्थान की तीन मार्कशीट, कर्नाटक स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी की चार फर्जी मार्कशीट बरामद की गई हैं। मीडिया से यह भी पता चला कि आरोपी ने पूछताछ में बताया कि उसके पास ऐसे युवक और परिजन भी आते थे जो युवती के परिजनों को दिखाने के लिए एमबीए, एलएलएम, एमसीए जैसी डिग्री के लिए 10 से 20 हजार रुपये तक देते थे। ऐसे में आरोपियों का फर्जी मार्कशीट वाला धंधा खूब चल रहा था।
साल 2024 में रुद्रप्रयाग का एक मामला मीडिया में सामने आया था। जिसमें बीएड की फर्जी डिग्री से शिक्षा विभाग में नौकरी के मामले में तीन शिक्षिकाओं को अदालत ने पांच-पांच वर्ष के कठोर कारावास और 10-10 हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई है। दोषी तीनों शिक्षिकाओं ने चौधरी चरण सिंह विवि मेरठ से बीएड की डिग्री के आधार पर शिक्षिका की नौकरी प्राप्त की थी। कुछ वर्ष बाद शिकायत पर विभाग ने एसआईटी से इन शिक्षिकाओं की डिग्री की जांच कराई, जो फर्जी मिली। मामले में विभाग ने शिक्षिकाओं को पहले निलंबित और बाद में बर्खास्त कर दिया।
ऐसा ही एक मामला साल 2024 के दौरान उत्तराखंड प्रदेश में सामने आया था। ऐसे ही प्रमाण पत्रों के फर्जीबाड़े के खिलाफ पूर्व में अमर उजाला समाचार पत्र ने एक विशेष अभियान चलकर समाचारों को प्रमुखता से छापा। जिसके बाद सरकार ने एसआईटी को ऐसे कई शिक्षकों की जांच के आदेश दिए। इसी जांच के बाद अब तक 65 शिक्षकों की सेवाएं समाप्त की जा चुकी हैं। वहीं 7 अन्य शिक्षकों के प्रमाण पत्र भी फर्जी मिले थे। मीडिया में प्रकाशित समाचारों से जानकारी मिली थी कि प्राथमिक और जूनियर हाईस्कूलों के शिक्षकों के प्रमाण पत्र जांच में फर्जी पाए गए थे। विभागीय कार्रवाई के चलते उनमें से 62 शिक्षकों की सेवाएं समाप्त की गई थी। इसी के चलते 13 के करीब शिक्षक सेवा समाप्ति के खिलाफ हाईकोर्ट चले गए हैं। जबकि 7 अन्य शिक्षकों की सेवा समाप्ति की कार्रवाई चल रही थी। इसी तरह साल 2024 में ही अंबेडकरनगर के एक इलाके में फर्जी डिग्री के जरिए परिषदीय स्कूल में दो शिक्षिकाओं के नौकरी करने का मामला एसटीएफ ने पकड़ा था।
देश के कई इलाकों में कई शिक्षक अमान्य एवं फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर सरकारी और अशासकीय विद्यालयों में बच्चों को पढ़ा रहे हैं। यह भी एक कड़वी सच्चाई हैं कि मौजूदा समय में पता नहीं कितने ही मामले होंगे जो देश के सामने अभी तक आये ही नहीं। ऐसे फर्जी शिक्षक हमारे बच्चों को मानसिक तौर पर खोखला तो कर ही रहे हैं और साथ में फर्जी डिग्री पर वेतन लेकर देश को आर्थिक नुकसान भी पंहुचा रहे हैं। इन्हीं फर्जी शिक्षक के कारण योग्य लोगों को नौकरी नहीं मिल पाती। यह फर्जी शिक्षक देश के लिए एक खतरा हैं। इस सबको रोकने के लिए सरकारों को सख्त कानून बनाने चाहिए।
