अपराध की दुनिया के अतीक अहमद का अंत
पुलिस मारेगी या फिर सिरफिर मारेगा, सड़क के किनारे पड़ें मिलेंगे। 19 साल पहले जो अतीक अहमद ने अपनी मौत को लेकर ये बात कही थी। 15 अप्रैल की रात को अतीक की यही बात सच साबित हुई। अतीक और उसके भाई अशरफ को तीन बदमाशों ने पुलिस और मीडिया के लाइव कैमरों के सामने मार दिया।
एक वह भी समय रहा, जब अपराध की दुनिया में अतीक अहमद का नाम ही काफी था। हर तरफ उसकी दहशत थी। एक डर का दूसरा नाम अतीक था। प्रयागराज के फिरोज तांगेवाले के बेटे अतीक पर मात्र 17 साल की आयु में हत्या का आरोप लगा था। उस पर पहला मुकदमा 1979 में दर्ज हुआ था। इसके बाद जुर्म की दुनिया में अतीक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। हत्या, लूट, रंगदारी अपहरण के न जाने कितने मुकदमे उसके खिलाफ दर्ज होते रहे। मुकदमों के साथ ही उसका राजनीतिक रुतबा भी बढ़ता गया। अतीक ने अपराध की दुनिया में पहचान मजबूत कर ली। अतीक के खिलाफ कुल 101 मुकदमे दर्ज हुए। वर्तमान में कोर्ट में 50 मामले चल रहे हैं, जिनमें एनएसए, गैंगस्टर और गुंडा एक्ट के डेढ़ दर्जन से अधिक मुकदमे हैं। जबसे उसने राजनीति में कदम रखा तब से उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कभी प्रयागराज में खौफ का पर्याय रह चुका अतीक अहमद बेहद ही अजीब तरीके से हमेशा के लिए खामोश हो गया। कभी शेर की तरह दहाड़ लगाने वाला माफिया अतीक बेसहारा बनकर खामोश हो गया। आज अपराध की दुनिया के अतीक अहमद का अंत हो गया।
बता दें, 15 अप्रैल शनिवार देर रात अतीक और उसके भाई अशरफ को मेडिकल के लिए अस्पताल लाया गया था। इस दौरान तीन बदमाशों ने मौजूद पुलिसकर्मियों और मीडिया कैमरों के सामने ताबड़तोड़ फायरिंग कर अतीक और उसके भाई अशरफ पर हमला बोल दिया। पुलिसकर्मियों के सामने पहले एक बदमाश ने अतीक अहमद के सिर में बंदूक सटाकर गोली मारी। गोली लगते ही अतीक जमीन पर गिर गया। उसके बाद हमलावरों ने अशरफ और घायल अतीक पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दोनों को मौत के घाट उतार दिया। देखने में यह सब एक फ़िल्मी सीन जैसा लग रहा था। लेकिन यह एक सत्य भी है कि कभी बहुबली के रूप में पहचान बनाने वाला अतीक अहमद कब्र में दफन हो गया। उसका भाई अशरफ भी कब्र में दफन हो गया। यहां पर एक ओर बात बताना जरुरी है इसके दो दिन पहले पुलिस एनकाउंटर में अतीक अहमद का बेटा असद और उसका एक साथी भी मारा गया था। जिस समय अतीक को गोलियां मारी गई उससे पहले मीडियाकर्मियों ने अतीक से बेटे के जनाजे में न पहुंच पाने को लेकर सवाल पूछा था ? तो अतीक ने जवाब दिया कि ये लोग ले ही नहीं गए। अतीक को नहीं पता होगा कि इसी पल उसकी भी हत्या होने वाली हैं। मीडिया कई कई घंटो से अतीक की हत्या के बारे में चर्चा कर रहा है। आखिर माफिया अतीक अहमद कौन था ? क्या है उसकी पूरी कहानी ? आइए जानते हैं..
उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद के चाकिया मोहल्ले में फिरोज अहमद का परिवार रहता था। वो तांगा चलाकर अपने परिवार का खर्चा चलाते थे। फिरोज अहमद तांगा चला कर अपने परिवार का गुजर-बसर करता था। इसी परिवार में अतीक अहमद का जन्म हुआ। अतीक अहमद का जन्म 10 अगस्त 1962 में हुआ था। अतीक अहमद का परिवार भी बेहद गरीब था। इसी फिरोज का बेटा अतीक पढ़ने में कम, बदमाशी पर ज्यादा फोकस करता था। अतीक का दसवीं क्लास का रिजल्ट आया और जिसमें अतीक फेल हो गया। इस परीक्षा में फेल होने बाद वह जल्द ही अमीर और बाहुबली बनने का सपने देखने लगा। महज 17 साल की उम्र में अतीक अहमद पर हत्या का आरोप लगा। उसकी उम्र भले ही उसकी 17 साल थी। उत्तर प्रदेश की आपराधिक दुनिया में अतीक अहमद की कहानी सन 1979 में शुरू होती है। इसके बाद हर जगह उनकी धाक जमने लगी। यही कारण रहा कि उनका नाम पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हो गया। समय के साथ नाबालिग से बालिग हुए अतीक अहमद का क्राइम ग्राफ भी बढ़ता चला गया। इस सब के चलते जुर्म की दुनिया में अतीक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अतीक अहमद पर हत्या, लूट, रंगदारी अपहरण के न जाने कितने मुकदमे उसके खिलाफ दर्ज होते रहे। मुकदमों के साथ ही उसका राजनीतिक रुतबा भी बढ़ता गया।
साल 1989 में ही अतीक ने राजनीति में जोरदार एंट्री की। इलाहाबाद की पश्चिमी सीट से अतीक ने निर्दलीय विधायकी का चुनाव लड़ा। अतीक अहमद की जीत पर मुहर लगी। अतीक अहमद भारी अंतर से चुनाव जीता। कल तक गैंगस्टर अतीक मर्डर केस में पुलिस के लिए नाक में दम करने वाला अब विधायक बन चुका था। अतीक अहमद साल 1989 में पहली बार विधायक बना। उसके बाद तो जुर्म की दुनिया में उसका दखल उत्तर प्रदेश के कई जिलों तक हो गया। अतीक अहमद का दबदबा बढ़ने लगा। लेकिन उसकी कोई बड़ी पहचान नहीं थी। अब अतीक अपनी पहचान को बड़ा बनाने के लिए दिमाग लगाने लगा। उसने इलाहाबाद के सबसे बड़े डॉन यानी बाहुबली का पता लगाया। साल 1989 में चांद बाबा का बड़ा नाम था। जिस चांद बाबा से पुलिस और बड़े-बड़े नेता खौफ खाते थे उसी का बेखौफ अंदाज में मर्डर कर दिया गया। चांद बाबा का कत्ल करने के बाद अतीक अहमद सबसे बड़ा बाहुबली बन गया। इस के बाद अतीक ने अपराधी का राजनीतिकरण तेजी से किया। साल 1992 में पहली बार पुलिस ने अतीक को एक गिरोह का सरगना घोषित कर दिया। साल 1993 में लखनऊ में गेस्ट हाउस कांड ने अतीक को काफी कुख्यात किया। गैंगस्टर एक्ट के साथ ही उसके खिलाफ कई बार गुंडा एक्ट की कार्रवाई भी की गई। एक बार तो उस पर एनएसए भी लगाया जा चुका है। अतीक ने समय – समय पर समाजवादी पार्टी और अपना दल का दामन पकड़ा। राजनीति पार्टी के लोगों ने अतीक का जोरदार स्वागत किया। अतीक लगातार 5 बार विधायक बना। अब उसने विधायकी छोड़ संसद में जाने का फैसला लिया। अतीक ने फूलपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़ा। उसके राजनीति के सफर में एक बड़ा मोड़ तब आया जब वह सांसद बन गया। उसके सासंद बनने के बाद विधायकी वाली सीट खाली हो गई। अतीक को यकीन था कि उसकी छोड़ी हुई सीट पर उसका भाई जीत जायेगा। लेकिन बसपा से चुनाव लड़ रहे राजू पाल ने बाजी मार ली। इस सीट पर राजू पाल की जीत ने अतीक अहमद को नाराज कर दिया। 25 जनवरी 2005 को राजू पाल की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में देवी पाल और संदीप यादव की भी मौत हो गई। इस हत्याकांड में सीधे तौर पर सांसद अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ का नाम सामने आया। अब अतीक अहमद का अपराध की दुनिया में कोई भी मुकाबला करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था।
माफिया अतीक का खौफ हर जगह दिखाई दे रहा था। आम लोग, कारोबारी, प्रशासनिक अधिकारी हर कोई अतीक से खौफ खाता था। इसके कई उदाहरण मिलते है। साल 2012 में अतीक अहमद जेल में बंद था। उस समय चुनाव लड़ने के लिए अतीक ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में जमानत के लिए अर्जी दी। उसका खौफ ऐसा था कि हाईकोर्ट के कुल 10 जजों ने केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया। उस दौरान 11वें जज ने सुनवाई तो की, लेकिन फैसला अतीक अहमद के पक्ष में ही दिया। जेल से बाहर आकर अतीक अहमद ने चुनाव तो लड़ा लेकिन वह चुनाव हार गया। चुनाव में राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने जीत हासिल की। राजू पाल की हत्या कराने के जुर्म में अतीक अहमद जेल में बंद था। इसके बाद अतीक अहमद ने साल 2014 में श्रावस्ती इलाके से समाजवादी पार्टी की टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा। लेकिन हार का ही सामना करना पड़ा। उस समय बीजेपी के नेता ददन मिश्रा ने चुनाव जीत लिया था। इस सब के चलते बाहुबली अतीक अहमद का कद लगातार गिरता गया।
25 जून 2005 को अतीक अहमद ने उपचुनाव में अपने भाई अशरफ की हार का बदला लेने के लिए विधायक राजू पाल को मार दिया था। इस हत्याकांड मामले का उमेश पाल एक अहम चश्मदीद गवाह था। पुलिस ने जब केस छान बिन शुरू की तो उमेश पाल को धमकियां मिलने लगी। उमेश पाल ने कोर्ट से सुरक्षा की गुहार की थी एवं इसके बाद यूपी पुलिस की ओर से सुरक्षा के लिए दो गार्ड भी दिए गए थे। अतीक अहमद के खिलाफ जबरन वसूली,अपहरण और हत्या सहित 100 से अधिक मामले दर्ज थे। राजू पाल की हत्या के एक गवाह उमेश पाल के अपहरण में उसे पहली बार सजा पिछले महीने मिली थी। अतीक अहमद अपनी राजनीति से ज्यादा अपराध के लिए जाना जाता था। 1 अक्टूबर 2022 को सीबीआई कोर्ट की स्पेशल जज कविता मिश्रा ने अतीक अहमद और भाई अशरफ सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए थे। 24 फरवरी 2023 को राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल पर हमला करके उसे मार दिया गया।
अतीक अहमद ने अपने अंडरवर्ल्ड साम्राज्य को बचाने और विस्तार करने के लिए चतुराई से राजनीति का इस्तेमाल किया था। अतीक ने अपनी पत्नी शाइस्ता परवीन को बसपा में शामिल करा दिया। हालांकि उमेश पाल की हत्या के आरोप में नामित होने के कारण उसे आगामी मेयर चुनावों में टिकट से वंचित कर दिया गया था। अतीक के बेटे भी उसके नक्शेकदम पर चलने लगे। अतीक का सबसे बड़ा बेटा उमर वर्तमान में 2018 में लखनऊ के एक व्यवसायी मोहित जायसवाल से जबरन वसूली, हमला करने और अपहरण करने के आरोप में जेल में बंद है। उमर ने पिछले साल अगस्त में सीबीआई के सामने सरेंडर किया था। अतीक का दूसरा बेटा अभी भी जेल में है। उसके खिलाफ भी हत्या के प्रयास और फिरौती के मामले दर्ज है। तीसरे बेटे असद को पिछले हफ्ते एक मुठभेड़ में पुलिस ने मार दिया गया था और अतीक के दो नाबालिग बेटे किशोर आश्रय गृह में बंद हैं।
एनकाउंटर होगा या पुलिस मारेगी या फिर अपनी ही बिरादरी का सिरफिर मारेगा। सड़क के किनारे पड़ें मिलेंगे। अतीक अहमद ने 19 साल पहले अपनी मौत को लेकर ये बात कही थी। अतीक अहमद साल 2004 में स्थानीय पत्रकारों से अपने लोकसभा चुनाव लड़ने के कारणों की चर्चा कर रहा था। उसने यह भी कहा था कि अपराध की दुनिया में सबको पता होता है, अंजाम क्या होगा. इसको कब तक टाला जा सकता है, यह सब इसकी ही जद्दोजहद है। 15 अप्रैल की रात प्रयागराज मेडिकिल कॉलेज में तीन युवकों ने अतीक और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी। किसी ने सोचा भी नहीं था कि अतीक के बेटे असद के मारे जाने के 72 घंटे के भीतर ऐसा हो जाएगा। अतीक अहमद ने जिस खूनी सफर से शुरुआत की थी, उसी खूनी सफर ने उसका, भाई और बेटे का अंत कर दिया। कुछ ही सेकण्ड्स के खूनी खेल ने अतीक जैसे माफिया किंग को मार दिया गया।