भारत में भ्रष्टाचारी मानते हैं कि नियम-कानून उनके लिए नहीं
आज भ्रष्टाचार का खतरा भारत में सबसे अधिक चर्चित मुद्दा है जो सार्वजनिक बहस के क्षेत्र में बहुत बार आता है। भ्रष्टाचार एक ऐसा जहर है जो देश, संप्रदाय, समाज और परिवार के कुछ लोगों के दिमाग में बैठ गया है। इसमें केवल छोटी सी इच्छा और अनुचित लाभ के लिए सामान्य जन के संसाधनों की बरबादी की जाती है। किसी के द्वारा अपनी ताकत और पद का गलत इस्तेमाल करना है, फिर चाहे वो सरकारी या गैर-सरकारी संस्था क्यों न हो। भ्रष्टाचार उत्पादन की लागत को बढ़ाता है जो अंततः उपभोक्ता को वहन करना पड़ता है। इसके कारण सड़कों और पुलों जैसी परियोजना में भी खराब सामग्री का प्रयोग किया जाता है। ऐसे कई मामले सामने आते है, जिसमें पुल के गिरने से कई लोगों की मृत्यु हो जाती है। भ्रष्टाचार व्यापार करने में आसानी को बाधित करता है। जैसा कि हाल ही में जारी वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता सूचकांक ने इंगित किया है “निजी क्षेत्र अभी भी भारत में व्यापार करने के लिए भ्रष्टाचार को सबसे अधिक समस्याग्रस्त कारक मानता है”। यह निजी निवेश में बाधा डालता है, जो रोजगार पैदा करता है। भ्रष्टाचार हर सरकारी दफ्तरों में अपनी जड़े जमा चुका है। हैरानी वाली बात यह है कि रिश्वत को लेना सरकारी कर्मचारी अपना अधिकार मानते है। इस सिस्टम के कारण गरीब लोगों को सरकारी काम करवाने में मुश्किल होती है। भ्रष्टाचार के मामले में नागरिकों की मानसिकता भी गंभीर नहीं है, भ्रष्ट व्यवस्था को एक आवश्यक अंग मान लिया गया है। मध्य वर्ग के लोग अपना काम करवाने के लिए हर समय रिश्वत देने को तैयार रहते है। भारत में 80% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में है और इसलिए कर या श्रम कानूनों के दायरे में नहीं आते हैं। ऐसे उद्यम आमतौर पर अधिकारियों को घूस देकर कानूनों के दायरे से बाहर रखते हैं जहां अनुपालन महंगा और जटिल होता है। ‘ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल के हालिया सर्वे के अनुसार भारत, एशिया का सबसे भ्रष्ट देश है। फोर्ब्स द्वारा जारी लिस्ट में एशिया के पांच सबसे ज्यादा भ्रष्ट देशों के नाम हैं। इसके रिपोर्ट के अनुसार, घूसखोरी के मामले में भारत ने वियतनाम, पाकिस्तान और म्यांमार को भी इस मामले में पीछे छोड़ दिया है। इसी तरह राजस्थान राज्य को देश के अन्य भ्रष्ट राज्यों में टॉप पर जगह मिली है। राज्य के 78 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें अपना काम कराने के लिए रिश्वत देनी पड़ी।
भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है वह आचरण जो किसी भी प्रकार से अनैतिक और अनुचित हो। जब कोई व्यक्ति न्याय व्यवस्था के मान्य नियमों के विरूद्ध जाकर अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए गलत आचरण करने लगता है तो वह व्यक्ति भ्रष्टाचारी कहलाता है। भ्रष्टाचार के कारणों में स्वार्थ, आर्थिक विषमता, असंतोष, भाई-भतीजावाद तथा नैतिक मूल्यों का ह्रास शामिल हैं। कुछ अन्य कारणों में लालफीताशाही, सरकार की आर्थिक नीतियाँ, आवश्यक वस्तुओं की कमी, वैश्वीकरण- उदारीकरण के कानून, उपभोक्तावादी संस्कृति में वृद्धि तथा चुनावी खर्च का बढ़ता स्तर ज़िम्मेदार है। भ्रष्टाचार सत्ता या सत्ता के पदों पर बैठे व्यक्तियों, जैसे सरकारी अधिकारियों, राजनेताओं, व्यापारिक नेताओं, या कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा बेईमानी या कपटपूर्ण व्यवहार को संदर्भित करता है। रिश्वतखोरी, गबन, भाई-भतीजावाद, सत्ता के दुरुपयोग और धोखाधड़ी भ्रष्टाचार के ही रूप है। 2017 के एक सर्वेक्षण के अध्ययन के अनुसार, निम्नलिखित कारकों को भ्रष्टाचार के कारणों के रूप में धन का लालच, इच्छाएँ, बाजार का उच्च स्तर, राजनीतिक एकाधिकार, लोकतंत्र का निम्न स्तर, कमजोर नागरिक भागीदारी और निम्न राजनीतिक पारदर्शिता को जिम्मेदार ठहराया गया है। बढ़ा हुआ भ्रष्टाचार आर्थिक निवेश को कम करता है, व्यापार करने की लागत में वृद्धि करके अक्षमता पैदा करता है। इसी तरह आय में असमानताओं को बढ़ाता है। इन प्रमुख आर्थिक कारकों को कम करके, गरीबी को बढ़ा दिया गया है। सार्वजनिक निर्माण कार्यों का स्तर घटिया होता है तथा अनेक बार ये कार्य केवल कागजों पर ही होकर रह जाते हैं। योग्य और निष्ठावान व्यक्तियों को समुचित अवसर नहीं मिल पाते हैं। गरीब व्यक्तियों के जीवन जीने के प्राकृतिक अधिकारों पर प्रतिकूल असर पड़ता हैं।
भारत में 1% अमीरों के पास कुल संपत्ति का लगभग 60% हिस्सा है। उच्च आय स्तर पर यह क्रोनी कैपिटलिज्म की ओर ले जाता है, निम्न आय स्तर पर यह लोगों को अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी अधिकारियों को रिश्वत देने के लिए मजबूर करता है। 1991 के भुगतान संतुलन संकट के बाद किए गए आर्थिक सुधारों के साथ, निजी क्षेत्र पहले राज्य द्वारा एकाधिकार वाले बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी बन गया है। इससे राजनेताओं और व्यापारियों के बीच अपवित्र गठजोड़ बढ़ गया है। भ्रष्टाचार न केवल भारतीय राजनीति का एक सर्वव्यापी पहलू बन गया है, बल्कि भारतीय चुनावों में भी एक महत्वपूर्ण कारक बन गया है। चुनावों में बढ़ते हुए खर्च को उम्मीदवारों द्वारा निवेश के रूप में देखा जाता है, जो फिर अवैध धन का दुरुपयोग करने के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। लगातार चुनावों के बीच कुछ सांसदों की संपत्ति में 1000% से अधिक का उछाल भी देखा गया है। देश के चुनावों में खुलकर काले धन का उपयोग होता है। गाँवों के पंच सरपंच और शहरों के पार्षद के चुनाव में भी बड़ी मात्रा में पैसा खर्च किया जाता है। चुनावों में खर्च हुए पैसे को निवेश के रूप में देखा जाता है। जिसकी कई गुणा वसूली चुनाव में मिली जीत के बाद की जाती है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (टीआई) के अनुसार, भारत एशियाई क्षेत्र में बहुत उच्च (180 देशों में से 85) स्थान पर है। टीआई सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में राज्य सेवाएं विशेष रूप से अदालतें, पुलिस, राजस्व विभाग और अस्पताल सबसे भ्रष्ट निकाय हैं। 2005 में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा किए गए एक अध्ययन में दर्ज किया गया कि 62% से अधिक भारतीयों ने किसी न किसी बिंदु पर नौकरी पाने के लिए एक सार्वजनिक अधिकारी को रिश्वत दी थी। Central Vigilance Commission (CVC) की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 2021 के अंत तक अभियोजन की मंजूरी के लिए विभिन्न विभागों में 633 सरकारी कर्मचारियों से जुड़े 171 भ्रष्टाचार के मामले लंबित हैं। इनमें से सबसे अधिक 65 मामले वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग के हैं, जिसमें 325 अधिकारी शामिल हैं। इसी तरह 67 कर्मचारियों के खिलाफ 12 मामले केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क विभाग के हैं। इसके अलावा रेल मंत्रालय के 30 अधिकारी और रक्षा मंत्रालय के 19 अधिकारी भ्रष्टाचार के मामलों में जांच का सामना कर रहे हैं। राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह द्वारा हाल ही में राज्यसभा में साझा की गई आधिकारिक जानकारी के अनुसार, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा 2017 और 2021 के बीच 3,730 सिविल और लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से संबंधित 2,370 मामले दर्ज किए गए थे। देश। 2017 में 1142 सिविल और लोक सेवकों के खिलाफ 632 मामले, 2018 में 867 के खिलाफ 460 मामले, 2019 में 607 के खिलाफ 396 मामले, 2020 में 565 सिविल सेवकों के खिलाफ 425 मामले और 2021 में 549 सिविल या लोक सेवकों के खिलाफ 457 मामले दर्ज किए गए।
हाल में सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा, ‘भ्रष्टाचार की बीमारी जीवन के हर क्षेत्र में फैल गई है। अब यह शासन-प्रशासन तक सीमित नहीं रह गई है। कितनी अफसोस की बात है कि अब आम नागरिक भी हताश होकर कहने लगे हैं कि यही उनके जीवन का हकीकत है। जिम्मेदार नागरिक भी मानने लगे हैं कि भ्रष्टाचार उनके जीवन का तरीका बन गया है।’ उसने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने जो सपना देखा था, उसे पूरा करने के लिए अनिवार्य आदर्शों में लगातार गिरावट आ रही है और समाज में नैतिक मानदंडों का क्षरण तेज गति से बढ़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह संपूर्ण समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय है। पीठ ने कहा, ‘भ्रष्टाचार की जड़ें ढूंढने के लिए बहुत बहस-मुबाहिसे की जरूरत नहीं रह गई है। सनातन धर्म में जिन सात पापों का जिक्र है, उनमें एक ‘लालच’ अपने पूरे सबाब पर है। दरअसल, संपत्ति की अतृप्त लालच ने भ्रष्टाचार को कैंसर की तरह फैला दिया है।’ इसमें आगे कहा गया कि ‘अगर भ्रष्ट लोग कानूनी एजेंसियों को ठेंगा दिखाने में सफल होंगे तो फिर पाप की सजा भुगतने का डर भी खत्म हो जाएगा। भ्रष्टाचारी मानते हैं कि नियम-कानून उनके लिए नहीं, ये तो सीधे-सादे लोगों के लिए हैं। उनके लिए तो पकड़ा जाना किसी पाप से कम नहीं।’