दो साल में भारत में पत्रकारों पर हमले: पोलिस प्रोजेक्ट रिपोर्ट
सार्वजनिक मुद्दों की जांच करने वाले न्यूयॉर्क स्थित गैर-सरकारी संगठन ‘द पोलिस प्रोजेक्ट’ ने भारत देश में पत्रकारों पर होने वाले हिसंक हमलों पर एक विशेष रिपोर्ट प्रकाशित की है। जांच रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में पत्रकार झूठे मामलों में गिरफ्तारी से लेकर हत्या तक विभिन्न प्रकार की हिंसा भरी घटनाओं का सामना पड़ता हैं, लगातार हो रही हिसंक घटनाओं के चलते देश में पत्रकारिता का पेशा खतरनाक बन गया है। ‘द पोलिस प्रोजेक्ट’ की रिपोर्ट के अनुसार, झूठे और मनगढ़ंत आरोपों के माध्यम से पत्रकारों को नियमित रूप से धमकाया जाता है। कई मामलों में तो पत्रकार को भी गिरफ्तार किया जाता है। जो लोग वर्तमान सरकार के खिलाफ बोलते हैं, उनके खिलाफ देशद्रोह या गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (जो एकतरफा व्यक्तियों को बिना सबूत के आतंकवादी के रूप में नामित करता है), राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम जैसे कड़े कानूनों के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है। पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत गिरफ्तार किए जाने का खतरा भी पत्रकारों को बना रहता है।
पोलीस प्रोजेक्ट द्वारा अपनी जांच में मई 2019 से अगस्त तक पत्रकारों के खिलाफ हिंसा घटनाओं को शामिल किया गया है। जांच में शामिल विभिन्न घटनाये कवरेज के दौरान पत्रकारों पर हुये हमलों को दिखती है। देश में पत्रकारों के खिलाफ हिंसा की 51 घटनाएं जम्मू-कश्मीर में, 26 विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में, 2020 में दिल्ली में दंगों के दौरान और 46 कोड मामलों की कवरेज के दौरान हुईं। देश में विवादास्पद रहे कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन में करीब 10 पत्रकारों के खिलाफ हिसंक घटनाएं हो चुकी हैं। जबकि देश भर के अलग अलग राज्यों में अन्य विषयों को कवर करते हुए 104 पत्रकारों के खिलाफ हिंसा घटनाएं हुईं।
प्रोजेक्ट की जाँच रिपोर्ट से जुड़ीं सुचित्रा विजयन का कहना है कि भारत में सरकारी सिस्टम पत्रकारों को उनकी पेशेवर जिम्मेदारियों को पूरा करने से रोकने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहा है। अभी भी देश के राज्यों में कई पत्रकार जेल में बंद हैं। केरल के पत्रकार सिद्दीकी कपूर को पिछले साल अक्टूबर में गिरफ्तार किया गया था, जब वह उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या की रिपोर्ट करने जा रहे थे। उत्तर प्रदेश सरकार ने पत्रकार के खिलाफ विभिन्न संप्रदायों के बीच घृणा भड़काने, धार्मिक भावनाओं को आहत करने, साजिश और देशद्रोह के लिए सिद्दीकी कप्पन पर गंभीर प्रावधान लगाए हैं। सुचित्रा विजयन कहती हैं, ”वर्तमान सरकार भारत में पत्रकारों को धमकाकर, गिरफ्तार करके या फर्जी मामले दर्ज कर या तरह-तरह के प्रतिबंध लगाकर पत्रकारों को खमोश करा रही है. “सरकार के गलत फैसलों पर खिलाफ बोलने वाले पत्रकारों के ऊपर देशद्रोह जैसे आरोप लगा दिये जाते है और पत्रकारों को लगातार गिरफ्तारी का सामना करना पड़ता है।”
पोलीस प्रोजेक्ट की जाँच रिपोर्ट में यह कहा गया है कि अवैध गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए), और सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) उन पत्रकारों के खिलाफ हैं जो सरकारी नीतियों और प्रथाओं की आलोचना करते हैं। देश की सरकार पत्रकारों पर सख्त नियमों के तहत मामले दायर करती हैं। जिसके चलते कई बार पत्रकारों को बिना किसी कानूनी कार्रवाई के महीनों तक जमानत ही नहीं मिल पाती। पोलीस प्रोजेक्ट की सुचित्रा विजयन कहती हैं, कई बार पत्रकारों को जान से मारने और महिला पत्रकार को रेप की धमकी तक दी जाती है। भारत में बढ़ते मीडिया प्रतिबंध और पत्रकारों पर होने वाली हिंसा से प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक बहुत बड़ा खतरा पैदा होता हैं। “
अगर मौजूदा हालात को गंभीरता से देखा जाए तो पता चलता हैं। पत्रकार को अपने पेशे में काम करना कितना मुश्किल हो गया हैं। देश में सरकार पर सवाल उठाने वाले या कमियों को उजागर करने वाले पत्रकारों के खिलाफ अक्सर मामले दर्ज कर दिये जाते हैं। कुछ अभियोजकों द्वारा दंड संहिता की धारा 124ए लागू करने के साथ, अधिकारियों की आलोचना करने वाले पत्रकारों को दबाने व खामोश करने के लिए अक्सर आपराधिक आरोपों का उपयोग किया जाता है, जिसके तहत “राजद्रोह” आजीवन कारावास की सजा है। संवेदनशील मुद्दों और बड़े घोटालो की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर हमले होते हैं, सरेआम पत्रकारों से साथ बदमाशों द्वारा मारपीट की जाती हैं और कुछ मामलों में पत्रकार अपने काम के चलते मार दिये जाते है। पत्रकारों के साथ होने वाली रोज़मर्रा की घटनाओं को समझना जरुरी है, जिनमें पत्रकार हिंसा का निशाना बनते रहते हैं। सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह हैं, ये मामले दर्ज ही नहीं किये जाते। लेकिन देश में पत्रकारों पर हिंसा का खतरा लगातार बना ही रहता है।