उत्तर प्रदेश में 12 पत्रकारों की हत्या, 138 पत्रकारों पर हमले
सरेआम पत्रकार को गोली मार दी जाती है।
देश में पत्रकारों की हो दर्द नाक हत्याएं और बुरी तरह से की जाने वाली मारपीट की घटनाये नहीं रुक रही। पत्रकारों पर हो रहे हमलों में माफिया के लोगों के साथ साथ राजनीति से जुड़े लोगों के नाम उजागर होते रहते हैं। कई मामलों में पुलिस वालों द्वारा पत्रकारों से मारपीट की जाने की भी पुष्टि होती रहती हैं। सरेआम पत्रकार को गोली मार दी जाती है या तेजदार हथियार से हमला कर उसे मौत के घाट उतार दिया जाता हैं। कई मामलों में यह भी देखने में मिलता है कि पत्रकार द्वारा अपने ऊपर हमला होने की शंका जाहिर करते हुए पुलिस को कोई दरखास्त दी जाती है तो उसको गभींरता से नहीं लिया जाता। उसके कुछ दिन बाद पता चलता है कि बदमाशों ने सरेआम उस पत्रकार की हत्या कर दी गई। जब पत्रकार की शंका जैसे ही उसकी हत्या कर दी गई, फिर कागज़ी करवाई शुरू कर दी जाती है। अगर पत्रकार की दरखास्त पर समय रहते करवाई की जाती तो उसकी जान बच सकती थी। हँलाकि पत्रकारों पर होने वाले हमलों के खिलाफ आवाजें उठती रहती है। देश व समाज की भलाई के लिए काम करने वाले पत्रकार की सुरक्षा को कैसे यकीनी बनाया जाये इस पर सरकारों द्वारा कोई भी काम ही नहीं किया गया।
2017 से पांच साल के दौरान यूपी राज्य में कुल 12 पत्रकारों की हत्या हुई हो चुकी है। सबसे ज्यादा 2020 में सात पत्रकार मारे गये। 2017 में दो पत्रकार मारे गये जिन में कानपुर के बिल्हौर में हिंदुस्तान अखबार के नितिन गुप्ता और ग़ाज़ीपुर में दैनिक जागरण के प्रतिनिधि राजेश मिश्रा शामिल हैं। इसी पांच साल के समय में पत्रकारों पर हमले के 138 मामले समाने आये हैं, जिनमें सबसे ज्यादा हमले 2020 और 2021 में हुए हैं। 2021 में हमलों की संख्या भले ज्यादा है। इस में यह देखा गया हैं, इन ज्यादातर मामलों में वह मामले जो पुलिस उत्पीड़न से जुड़े हैं। 2022 में अब तक अमेठी, कौशाम्बी, कुंडा, सीतापुर, गाजियाबाद से पत्रकारों पर शारीरिक हमले के मामले सामने आए हैं। पत्रकारों पर शरीरिक हमलों की सूची बहुत लंबी है। यूपी राज्य में 50 के करीब पत्रकारों पर पांच साल के दौरान शारीरिक हमला किये गये, जो पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति (CAAJ) की रिपोर्ट में भी दर्ज है। पत्रकारों के हमलावरों में पुलिस से लेकर नेता और दबंग व सामान्य लोग शामिल हैं। पत्रकारों पर ज्यादातर हमले रिपोर्टिंग के दौरान ही किये गए।
देश में पत्रकारों पर हो रहे हमलों के खिलाफ पत्रकारिता से जुड़े सगठंन सड़कों पर उतर विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं। मानव अधिकार के सगठंन भी कई बार पत्रकारों पर हो रहे हमलों के बारे चिंता जता चुके है। उत्तर प्रदेश में 2019 के सबसे भयावह तीन मामलों को कभी भुला नहीं जा सकता। यह मामले शामली जिले में न्यूज 24 के पत्रकार अमित शर्मा, ईटीवी भारत के खुर्शीद मिसबाही और सोनभद्र के विजय विनीत से जुड़े हैं। पत्रकार खुर्शीद और अमित शर्मा के केस भी CAAJ की रिपोर्ट में शामिल हैं। राज्य के सोनभद्र में यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन (यूपीडब्लूजेयू) के जिलाध्यक्ष विजय विनीत पर कातिलाना हमला नवंबर 2019 में हुआ था। हमलावर एक हिस्ट्रीशीटर है। 2020 में कुल सात पत्रकार राज्य में मारे गये- राकेश सिंह, सूरज पांडे, उदय पासवान, रतन सिंह, विक्रम जोशी, फराज़ असलम और शुभम मणि त्रिपाठी। पत्रकार राकेश सिंह को बलरामपुर में उन्हें घर में आग लगाकर दबंगों ने मार डाला। राकेश सिंह की भ्रष्टाचार को उजागर करने के चलते उनकी जान ली गयी। राकेश सिंह राष्ट्रीय स्वरूप अखबार से जुड़े थे, भ्रष्टाचार पर वह रपोटिंग करते रहे हैं।
उन्नाव के शुभम मणि त्रिपाठी भी रेत माफिया के खिलाफ लिखते रहे हैं। पत्रकार शुभम मणि त्रिपाठी को इसी के चलते उन्हें धमकियां मिलती रहती हैं। इन धमकियों को देखते हुये उन्होंने पुलिस में सुरक्षा की गुहार भी लगायी थी लेकिन पत्रकार शुभम मणि को गोली मार दी गयी। इसी तरह गाजियाबाद में पत्रकार विक्रम जोशी को भी दिनदहाड़े गोली मार दी गई। इसी साल बलिया के फेफना में टीवी पत्रकार रतन सिंह को भी गोली मारी गयी। सोनभद्र के बरवाडीह गांव में दबंगों ने पत्रकार उदय पासवान और उनकी पत्नी की बुरी तरह पीट-पीट के हत्या कर दी। उत्तर प्रदेश के उन्नाव में अंग्रेजी के पत्रकार सूरज पांडे की लाश रेल की पटरी पर संदिग्ध परिस्थितियों में बरामद हुई थी। पुलिस ने इसे खुदकुशी बताया लेकिन परिवार ने हत्या बताते हुए एक महिला सब-इंस्पेक्टर और एक पुरुष कांस्टेबल पर आरोप लगाए थे। परिवार के आरोपों के बाद उनकी गिरफ्तारी हुई।
कौशांबी में पत्रकार फराज असलम की हत्या 7 अक्टूबर 2020 को हुई। फराज़ पैगाम-ए-दिल में संवाददाता थे। पत्रकार फराज असलम की हत्या के मामले में पुलिस को मुखबिरी के शक में हत्या की आशंका जतायी गयी थी। एक मामला सीतापुर से 2020 का है। सीतापुर जिले में पत्रकार शैलेन्द्र विक्रम सिंह अवैध रूप से संचालित हो रहे एक अस्पताल की कवरेज कर रहे थे। उस कवरेज के चलते डॉक्टर और उसके साथियों ने उसे बुरी तरह पीटा। इस मारपीट में पत्रकार शैलेन्द्र विक्रम सिंह को सिर में गंभीर चोटें आयी थीं। पत्रकार ने मौके से भागकर अपनी जान बचायी और थाने जाकर आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया। उत्तर प्रदेश के अलग अलग इलाकों पर नज़र मारे हत्याओं के अलावा पत्रकारों पर कानूनी मुकदमों और नोटिस के मामले 2020 और 2021 में खासकर सबसे संगीन रहे हैं। देश में शायद ही कोई प्रदेश ऐसा नहीं हैं, जहां पत्रकारों को तरह तरह के माफिया की खबरों को उजागर करने के बदले मुकदमा न झेलना पड़ता हो।