कई तरह के माफिया पत्रकारों पर हमला कर रहे हैं।
Various types of mafia are attacking journalists.
बीते कई सालों में भारत में पत्रकारों के साथ हिंसा और हमलों के मामले तेजी से बढे हैं। ये एक बड़ी चिंता की बात है कि भारत अब पत्रकारों के लिहाज से ज़रा भी सुरक्षित नहीं है। 180 देशों के ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’ में भारत का नंबर 142वां है। साल 2020 में भी भारत इसी रैंकिंग पर था। पत्रकारों के लिए कुछ नहीं किया गया।
पत्रकारों पर आये दिन हो रहे हमले इस देश को शायद गर्त की तरफ धकेलने का काम कर रहे हैं। इस बात को हम झुठला नहीं सकते कि अगर ऐसे ही पत्रकारों पर हमले होते रहे तो एक दिन लोकतंत्र खतरे में होगा. साथ ही अत्याचार और भ्रष्टाचार बहुत आसानी से फल फूल रहा होगा और ये देश उस वक्त मूक दर्शक बन के सब कुछ चुप चाप देख रहा होगा। आखिर ये लोग कौन हैं इनके हौसले इतने बुलंद कैसे हैं कि ये लोग हर आवाज उठाने वाले लोगों को मार देते हैं।
यहां सवाल एक बार फिर यही उठ रहा है कि आखिर सच्चाई लिखने वाले पत्रकारों को क्यों मारा पीटा जाता है। क्या हमारे देश का चौथा स्तम्भ अब सुरक्षित नहीं रहा। हर बार दिखावे के तौर पर रिपोर्ट तो दर्ज की जाती है मगर उसका असर देखने को नहीं मिलता है। आखिर इसकी जवाबदेही कौन देगा कि जब भी पत्रकार प्रभावशाली लोगों के खिलाफ मुहिम छेड़ते हैं तो उन्हे उसकी कीमत जान देकर क्यों चुकानी पड़ती है।
इंडिया प्रेस फ्रीडम रिपोर्ट (India Press Freedom Report) 2021 हाल ही में राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप द्वारा जारी की गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 13 मीडिया हाउस और अखबारों को निशाना बनाया गया, 108 पत्रकारों पर हमला किया गया और 6 पत्रकार मारे गए। जम्मू और कश्मीर, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और त्रिपुरा उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची में सबसे ऊपर हैं जहां 2021 में पत्रकारों और मीडिया घरानों को निशाना बनाया गया था। 24 पत्रकारों को उनके काम करने के लिए शारीरिक रूप से हमला किया गया, बाधित किया गया, धमकाया गया और परेशान किया गया। ये सभी हमले सरकारी अधिकारियों द्वारा किए गए थे। इसमें पुलिस के हमले भी शामिल हैं। इनमें से 17 हमले पुलिस हमले थे। 2021 में पत्रकारों के खिलाफ 44 एफआईआर दर्ज की गईं। इनमें से 21 पर आईपीसी की धारा 153 के तहत मामला दर्ज किया गया था। एक रिपोर्ट में महिला पत्रकारों पर हुए हमले का भी उल्लेख है। रिपोर्ट बताती है कि कैसे महिला पत्रकारों का ऑनलाइन उत्पीड़न किया जाता है और फील्ड में काम करने के दौरान उन्हें “क्रूरता” से निशाना बनाया जाता है।
पत्रकार गीता सेशू और उर्वशी सरकार ने बीते पांच साल के दौरान पत्रकारों पर हुए हमलों पर एक रिपोर्ट तैयार की है। ‘गेटिंग अवे विद मर्डर’ नाम की इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पत्रकारिता के पेशे से जुड़े लोगों के लिए अपना काम करना बीते पांच सालों में मुश्किल हुआ है। 2014 से 2019 के बीच पत्रकारों पर हुए हमलों के 198 गंभीर मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें 36 मामले तो सिर्फ 2019 में ही दर्ज किए गए हैं. छह मामले तो बिलकुल ताजा हैं जो संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुए।
रिपोर्ट तैयार करने वाली स्वतंत्र पत्रकार उर्वशी सरकार ने डीडब्ल्यू से कहा,”हमारी रिपोर्ट का एक उद्देश्य यह भी था कि हम जानना चाहते थे कि क्या जिन पत्रकारों पर हमले हुए हैं, उन्हें न्याय मिला या नहीं. साथ ही हम यह भी जानना चाहते थे कि आखिर पत्रकारों पर हमले के कारण क्या होते हैं, क्योंकि पत्रकार ग्राउंड पर रहकर सिर्फ घटना को रिपोर्ट करता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि पत्रकार विस्तार से रिपोर्ट कर रहे हैं जिससे एक खास शक्ति को चोट पहुंच रही हो.” उर्वशी बताती हैं कि किसी घटनाक्रम को रिपोर्ट करने के दौरान भी पत्रकार पर हमले के मामले सामने आए हैं। साथ ही पत्रकार कई बार अवैध खनन करने वाले माफिया और आपराधिक छवि वाले नेताओं के भी निशाने पर आ जाते हैं। उर्वशी कहती हैं, “हमने पाया कि कई तरह के माफिया पत्रकारों पर हमला कर रहे हैं, जैसे रेत माफिया, अवैध कारोबार के माफिया. कई बार बिजनेसमैन भी भ्रष्टाचार पर की जानी वाली रिपोर्टिंग से नाराज हो जाते हैं और हमला करवा देते हैं।”
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। जहां सब कुछ लोकतांत्रिक तरीके से होता है। लेकिन इस लोकतंत्र को खड़ा करने के लिए जिन चार स्तंभों का इस्तेमाल होता है, उनमें से एक स्तंभ आज लहूलुहान है। उसकी दरारों से खून रिस रहा है। क्योंकि उस स्तंभ को खड़ा करने वाले पत्रकारों की भारत में आए दिन हत्याएं हो रही हैं, उन पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं। न्यूयॉर्क स्थित एक संगठन ‘पोलीस प्रोजेक्ट’ ने भारत में पत्रकारों के खिलाफ हो रही हिंसा पर एक शोध किया है। जिसमें बताया गया है कि मई 2019 से अगस्त 2021 तक भारत में लगभग 228 पत्रकारों पर 256 हमले हुए हैं। इन हमलों में वह पत्रकार ज्यादा शिकार हुए हैं जो भारत के दूरदराज के इलाकों में ग्राउंड पर रिपोर्टिंग करते हैं। इन पत्रकारों को फर्जी मामलों में गिरफ्तारी से लेकर हत्या और न जाने कितनी तरह की हिंसा झेलनी पड़ती है।
यूनाइटेड नेशंस के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एक कार्यक्रम में कहा था कि पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर अभियान चलाया जाता है और उन्हें निशाना बनाया जाता है. हालांकि एंटोनियो गुटेरेस का यह कथन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारों पर हो रहे हमलों के संबंध में था। जिसमें उन्होंने बताया कि साल 2006 से 2020 के बीच लगभग 1200 से ज्यादा पत्रकारों की हत्या हुई. अकेले 2020 में ही 62 पत्रकारों की हत्या कर दी गई।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन बी. लोकुर ने शनिवार को कहा कि देश में मीडिया पर कई प्रकार से हमला किया जा रहा है और प्रेस की स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त एक मौलिक अधिकार है तथा पत्रकारों को इसकी रक्षा के लिए खड़ा होना चाहिए. पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए आईपीआई-इंडिया पुरस्कार प्रदान करने के लिए आयोजित के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जस्टिस लोकुर ने कहा कि पत्रकारों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने और उन्हें उनका काम करने के लिए गिरफ्तार करने समेत कई घटनाओं से मीडियाकर्मियों पर हतोत्साहित करने वाला प्रभाव पड़ता है, जिससे वे जरूरत से ज्यादा सावधान होकर काम करने लगते हैं।
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव की प्रेस कॉन्फेंस में जमकर हंगामा हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यक्रम सपा नेता, सुरक्षाकर्मियों और कार्यकर्ताओं ने मिलकर पत्रकारों पर हमला किया। इस घटना में कई पत्रकार घायल हो गए हैं। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल होता है।
पिछले दिनों नागरिकता कानून के खिलाफ लखनऊ में विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ के पत्रकार उमर राशिद को दो घंटे थाने में बिठा लिया था। हालांकि उमर अपना परिचय शुरुआत से ही दे रहे थे लेकिन पुलिस ने उनकी एक नहीं सुनी। उमर अपने दोस्तों के साथ एक ढाबे में बैठे हुए थे, तभी पुलिस उन्हें पूछताछ के लिए थाने ले गई। हालांकि बाद में पुलिस ने उन्हें यह कहते हुए छोड़ दिया कि गलतफहमी की वजह से उन्हें थाने लाया गया।
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