भारत देश में खतरनाक मिलावटी माफिया पूरी तरह सक्रिय
Dangerous adulterated mafia fully active in India
खाद्य पदार्थ की मिलावट देश की सबसे बड़ी समस्या है हालत यह है कि बाजार में बिकने वाले खाद्य पदार्थ में अधिकतर मिलावट की जा रही है इन खाद्य पदार्थ की मिलावट के जरिए धीमा जहर दिया जा रहा है जो बहुत खतरनाक है देश के लोग मिलावटी खाद्य पदार्थ खा कर बड़ी बड़ी बीमारियों के शिकार हो रहे है मिलावटी खाद्य पदार्थ के उपयोग से आखों की रोशनी जाना, हृदय संबन्धित रोग, लीवर खराब होना, कुष्ठ रोग, आहार तंत्र के रोग, पक्षाघात व कैंसर जैसे हो सकते हैं। खाद्य पदार्थों में मिलावट होना आज आम सी बात हो गई है क्योंकि मिलावट इतने बड़े पैमाने पर हो रही है कि अब इसके विषय में कुछ भी सुनना साधारण सा लगता है। मिलावट के कारण आज मनुष्य अनेकों रोगों से ग्रस्त होता जा रहा है क्योंकि जिन सामानों का उपयोग वह अपने दैनिक जीवन में अपने आप को स्वस्थ रखने के लिए करता है, वही उसकी बीमारी का कारण बनते जा रहे हैं।
आम तौर पर, यदि किसी भोजन में जहरीला या हानिकारक पदार्थ होता है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है, तो इसे मिलावटी माना जाता है। मिलावट का एक रूप किसी खाद्य पदार्थ में कच्चे रूप या तैयार रूप में खाद्य पदार्थ की मात्रा बढ़ाने के लिए दूसरे पदार्थ को मिलाना है, जिसके परिणामस्वरूप खाद्य पदार्थ की वास्तविक गुणवत्ता का नुकसान होता है। खाद्य सामग्री में मिलावट का मतलब है कि किसी खाद्य उत्पाद में कोई ऐसी चीज मिलाना या उससे हटाना जिससे उसकी गुणवत्ता प्रभावित हो। मिलावट जान-बूझकर भी की जा सकती है या अनजाने में भी हो सकती है। कई बार खाद्य सामग्री का सही रखरखाव नहीं होने की वजह से भी उसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है।
कुछ व्यापारी अधिक लाभ कमाने के लिए खाद्य पदार्थों में मिलावट करते हैं और मिलावट करते समय बिल्कुल भी यह नहीं सोचते कि इस मिलावट के कारण अन्य व्यक्तियों के स्वास्थ्य पर कितना दुष्प्रभाव पड़ेगा। इस प्रकार के व्यापारियों को केवल धन कमाने से मतलब होता है, उन्हें समाज या देश की कोई चिंता नहीं होती है। यदि चिंता होती, तो वे यह सब कार्य कभी नहीं करते। खाद्य पदार्थों में मिलावट करने से उसे ग्रहण करने वाले व्यक्तियों पर जो दुष्प्रभाव होता है, वह बीमारी के रूप में सामने आता है। बीमारी के उपचार में रोगी का लाखों रुपया खर्च हो जाता है और इतना ही नहीं, उसके पश्चात भी उसे अन्य अनेक प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। खाद्य अपमिश्रण से मूल खाद्य पदार्थ तथा मिलावटी खाद्य पदार्थ में भेद करना काफी मुश्किल हो जाता है। अपमिश्रित आहार का उपयोग करने से शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और शारीरिक विकार उत्पन्न होने की आशंका बढ़ जाती है।
भारत देश में खतरनाक मिलावटी माफिया पूरी तरह सक्रिय है। अनेक स्वार्थी उत्पादक एवं व्यापारी कम समय में अधिक लाभ कमाने के लिए खाद्य सामाग्री में अनेक सस्ते अवयवों की मिलावट करते हैं, जो हमारे शरीर पर दुष्प्रभाव डालते हैं। सामन्यात: दैनिक उपभोग वाले खाद्य पदार्थ जैसे दूध, छाछ, शहद, मसाले, घी, खाद्य तेल, चाय-कॉफी, खोया, आटा आदि में मिलावट की जा रही है। खाद्य पदार्थों में जो वस्तुएं मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए सबसे लाभदायक मानी जाती थी, उनमें ही आज मिलावट सबसे अधिक हो रही है।
भारत जैसे देश में त्योहारों की गिनती भी बहुत जयादा है हर महीने कोई न कोई त्यौहार होता है। खाद्य पदार्थ की मिलावट करने वाला माफिया भी त्योहारों में बहुत जयादा सक्रिय हो जाता है। इस दौरान परिचितों, रिश्तेदारों और मित्रों में बांटने एवं अपने इस्तेमाल के लिए मिठाई और अन्य चीजों की खरीदारी बढ़ जाती है। शहरों व गावों में छोटे से छोटे और बड़े से बड़े व्यापारी इन त्योहारों के सीजन में जयादा पैसा बनाने के लालच में खाद्य पदार्थ में मिलावट करते है। कुछ बेईमान दुकानदार ज्यादा मुनाफा कमाने की चक्कर में मिलावट करने के साथ-साथ वजन भी कम तौलते है। कोई देखने वाला नहीं है अगर इन लोगों के यहाँ सरकारी अधिकारियों की झापेमारी होती भी है, उस से किसी को सजा नहीं मिलती ।
मिलावटखोर क्या क्या करते है, एक नजर में देखते है:
- काली मिर्च में पपीते के बीज या काली मिर्च के खोखली मिर्च की मिलावट की जाती है।
- हल्दी में मेटानिल येलो नामक रसायन की मिलावट की जाती है, जिससे कैंसर जैसी बीमारी का खतरा रहता है।
- धनिया पाउडर में चूड़ा व गेहूं की भूसी मिलायी जाती है. इसके अलावा कुन्नी (लकड़ी का बुरादा) मिलाया जाता है. कुन्नी की गंध को छुपाना के लिए तेजपत्ता को पीस कर इसमें मिला दिया जाता है.
- दूध में यूरिया, कॉस्टिक सोड़ा, लवण, शक्कर एवं ग्लूकोज़ पाउडर एक बर्तन में लेकर बहुत अच्छी तरह मिश्रण बनाने के बाद उसमें नल का पानी मिलाया जाता है। उसके बाद सोयाबीन तेल एवं दूध पाउडर डाला जाता है। इस तरह कृत्रिम दूध तैयार हो जाता है।
नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक दूध में यूरिया, अमोनिया, नाइट्रेट फर्टिलाइजर, शुगर, नमक और ग्लूकोज की मिलावट से दूध की मात्रा के साथ ही एसएनएफ और फैट भी बढ़ जाता है। न्यूट्रलाइजर इसलिए मिलाया जाता है ताकि दूध में खटास पैदा न हो। - देसी घी में पाम आइल, कृत्रिम एसेंट व वनस्पती तेल का मिलाना घी की गुणवत्ता को तो नष्ट कर ही देता है, लोगों के पेट में जाकर उनकी सेहत भी बिगाड़ता है।
इसी तरह मसालों में रंग, चाक मिट्टी, लकड़ी का बुरादा, खसखस में मुर्गी को खिलाया जाने वाला दाना, काली मिर्च में काले रंग से रंगा मोटा साबूदाना, काजू में मूंगफली के दानों को पीसकर उन्हें सांचों से काजू के आकर में बदलकर मिलावट किए जाने जैसे काम किए जा रहे हैं। फलों को पकाने के लिए रांगा, नौसादर जैसे खतरनाक पदार्थ मिलाये जाते हैं।
इस मिलावट कारोबार पर कठोरता से और पूरी तरह से नियन्त्रण नही हो रहा हैं। मिलावट खाद्य पदार्थो को प्रयोगशालाओं में जांचने परखने पर जो तथ्य सामने आये है, वे रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं। नकली घी, पनीर व मावा में यूरिया सेम्पो आदि मिलाया जाता है. पेय पदार्थो में नालियों का पानी मिलाया जाता हैं। नकली शहद, पीछे हुए मसाले, मिर्च आदि में रंग देने के लिए हानिकारक केमिकल मिलाये जाते हैं। क्या यह सीधे-सीधे अपराध नहीं कि प्रदेश की पूरी जनता को खानपान की इस मिलावट के जरिए धीमा जहर दिया जा रहा है! क्या यह खाद्य विभाग के मोटी तनख्वाह ले रहे अधिकारियों या प्रशासन में बैठे जिम्मेदारों को दिखाई नहीं देता! क्या आम जनता अपनी कड़ी मेहनत से कमाया हुआ धन खर्च कर अपने लिए जो खाद्य सामग्री खरीदती है, वह उसमें ‘जहर खरीदने को इसी तरह बाध्य होती रहेगी! इस तरह मिलावटी कारोबार से कैंसर, चर्मरोग, ह्रद्यरोग आदि अनेक घातक रोग फ़ैल रहे है. धन हानि भी हो रही है और नैतिक आदर्शो का पतन भी हो रहा हैं।
मिलावटी खाद्य पदार्थों से हजारों लोग रोगी बनते हैं। मिलावट करने वाले यह नहीं सोचते कि उनके कारण कितनों को ही अकाल मौत का सामना करना पड़ रहा है। क्या वे परोक्ष रूप से जनजीवन की सामूहिक हत्या का षड्यंत्र नहीं कर रहे? हत्यारों की तरह उन्हें भी अपराधी मानकर दंड देना अनिवार्य होना चाहिए। मिलावट एक ऐसा खलनायक है, हत्यारी प्रवृत्ति है, जिसकी अनदेखी जानलेवा साबित हो रही है। शुद्ध खाद्य पदार्थ हासिल करना हमारा मौलिक हक है और यह सरकार का फर्ज है कि वह इसे उपलब्ध कराने में बरती जा रही कोताही को सख्ती से ले। देश में ऐसा कोई बड़ा जन-आन्दोलन भी नहीं है, जो मिलावट के लिये जनता में जागृति लाए।
फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड्स ऐक्ट, 2006 को लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। राज्य के फूड सेफ्टी ऑफिसर्स खाद्य सामग्री का सैंपल जमा करते हैं। वे इस सैंपल को जांच के लिए एफएसएसएआई द्वारा मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में भेजते हैं। अगर सैंपल में मिलावट पाया जाता है तो एफएसएसएआई ऐक्ट के प्रावधान के मुताबिक कार्रवाई की जाती है। सरकार ने मिलावट को रोकने के लिए कानून भी बनाए हैं, परंतु फिर भी मिलावट का यह काला धंधा भली-भांति फल फूल रहा है। इसके अतिरिक्त यदि वस्तु का उचित मूल्य देने के बाद भी किसी व्यक्ति को मिलावट का सामान मिलता है, तो यह अत्यंत ही चिंता का विषय है, जिस पर सरकार को ध्यान देना आवश्यक है। मिलावट के इस दौर में हमें खाद्य पदार्थों को भली-भांति देख कर लेना चाहिए। हमें खाद्य पदार्थों से संबंधित जानकारी को अवश्य पढ़ना चाहिए और अन्य व्यक्तियों को भी मिलावट के प्रति जागरूक करना चाहिए क्योंकि मिलावट को समाप्त करने का एकमात्र उपाय जागरूकता ही है।