क्या मोरबी हादसा सिर्फ ईश्वर की मर्जी थी ?
आखिर बड़े हादसों की जांच के बाद सजा क्यों नहीं मिलती ?
गुजरात के मोरबी में हैगिंग पुल गिरने के कारण 130 से ज्यादा लोगों की जान चली गई। जब पुल गिरने की घटना घटित हुई, तो यह खबर मीडिया में सुर्खिया बनी रही। हर तरफ दर्दनाक घटना की चर्चा हुई। इस दौरान मोरबी पुल की देखरेख और संचालन करने वाली कंपनी के मैनेजर सहित कई पदाधिकारियों को पकड़ा गया। मोरबी पुल गिरने की घटना की जांच करने के लिये टीम बनाई गई। हाल ही में सीजेएम अदालत में कंपनी के एक मैनेजर दीपक पारेख ने कहा कि मोरबी पुल गिरने में ईश्वर की मर्जी बताया। कंपनी के मैनेजर का यह कहना भविष्य के लिये कई सवाल खड़े करता हैं। जिस घटना में भ्रष्टाचार, लालच और लापरवाही के कारण 130 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवा दी हो। उस घटना की जबावदेही वाली कंपनी का अधिकारी यह कह रहा हो कि यह सभी लोग ईश्वर की मर्जी से मारे गये। विभागों की बिना एनओसी के लोगों की भीड़ के लिये पुल खोल दिया गया। पता चला हैं कि साल 2020 में पुल का संचालन करने वाली ओरेवा कंपनी ने कलेक्टर से कहा था कि जब तक उन्हें स्थायी ठेका नहीं दिया जाता। वह सिर्फ पुल की अस्थायी मरम्मत करके पुल को पब्लिक के लिये खोल देंगे। कंपनी ने सहित रखी थी कि उनकी मांग पूरा हो जाने के बाद ही पुल की मरम्मत का काम करेंगे। इससे पता चलता हैं कि कंपनी जल्द ही पुल खोल कमाई करना चाहती थी। कंपनी की इसी जल्दबाजी के चलते बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई। अब कंपनी ईश्वर की मर्जी होने की दुहाई दे रही हैं। कंपनी के मैनेजर का यह रवैया इंसानियत को शर्मसार कर रहा हैं। इस सब के लिये मोरबी नगर पालिका के कुछ अधिकारी भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। वह भी 130 से ज्यादा लोगों के मारे जाने के बराबर के जिम्मेदार हैं। नगर पालिका के कुछ गैर जिम्मेदार अधिकारियों ने सिर्फ 300 रुपये के स्टांप पेपर पर ओरेवा कंपनी से पुल की देखरेख और संचालन करने का समझौता किया। हलांकि बताया जा रहा हैं कि स्टांप पेपर ड्यूटी में भी 31 लाख रुपये की चोरी भी की गई।
मोरबी पुल में पूरी तरह फर्जीवाड़ा किया गया। अगर विशेषज्ञों की माने तो सही तरीके से पुल का मूल्यांकन नहीं किया गया। इन्हीं सब कारणों के चलते मोरबी का हैगिंग पुल सैकड़ों लोगों का बजन झेल नहीं सका। पुल पर इतनी बड़ी संख्या में लोगों का एकत्र होना भी कंपनी के अधिकारियों की जिम्मेदारी बनाता हैं। मोरबी में पुल गिरने की यह पहली घटना नहीं हैं। इससे पहले भी कई पुलों पर बड़ी दर्दनाक घटनाये घटित हुई। हलांकि इन घटनाओं जांच भी की गई लेकिन किसी को भी सजा नहीं हुई। अब सवाल यह उठता हैं कि क्या मोरबी में पुल गिरने के पीड़ित परिवारों को इंसाफ मिल सकेगा। साल 1979 में मोरबी मच्छू नदी पर बांध टूट जाने की घटना घटित हुई थी। बांध टूटने की घटना इतनी बड़ी थी कि इसमें करीब सरकारी आकंड़ो के मुताबिक दो हजार लोग मारे गये थे। उस समय की विपक्षी पार्टियों के अनुसार मोरबी में बांध टूटने की घटना में दो हजार से कहीं ज्यादा लोग मारे गये थे। इसी तरह साल 1981 में बिहार के मानसी स्टेशन से एक ट्रेन सहरसा जा रही थी। जब ट्रेन बागमती नदी के पुल से गुजर रही थी तभी अचानक से एक झटका लगा। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता ट्रेन के 7 डिब्बे पुल से नदी में जा गिरे। बागमती नदी पर घटित घटना में 500 से ज्यादा लोग मारे गये थे। इस घटना की गंभीरता से जांच की गई। घटना में 500 से ज्यादा लोग मारे जाने के बावजूद किसी को सजा नहीं मिल पायी। साल 2001 में केरल राज्य की कदलुंदी नदी पर रेल पुल हादसे में 60 से ज्यादा लोग मारे गये। इस घटना में भी जांच कमेटी का गठन किया गया। लेकिन इस जांच में भी पीड़ित परिवारों को इंसाफ नहीं मिल सका। केरल की इस घटना में भी किसी को सजा नहीं मिल पाई। साल 2002 में बिहार के रफीगंज पुल पर दर्दनाक रेल दुर्धटना घटित हुई। राजधानी एक्सप्रेस उत्तर-मध्य भारत में धावे नदी पर बने पुल पर पटरी से उतर गई थी। बिहार रेल दुर्धटना में 117 लोग मारे गये थे। इस घटना में भी उच्च स्तरीय जांच कमेटी बनाई गई। बिहार की इस घटना की भी जांच हुई , लेकिन सजा किसी को नहीं हुई। साल 2005 में आंध्रप्रदेश के लेलीगोड़ा में बने रेलवे पुल पर बड़ी रेल दुर्धटना घटित हुई। इस घटना में 100 से ज्यादा लोगों की जान चली गई और 200 से अधिक घायल हो गए। हालात ऐसे थे, कि रेलवे विभाग और संचाई विभाग एक – दूसरे पर आरोप लगाते रहे।
अगर इन घटनाओं को देखा जाये तो पता चलता हैं कि बड़ी संख्या में लोग मारे जाते हैं। ऐसी बड़ी घटनाये मीडिया की सुर्खियां तो बन जाती हैं। हर बार जांच कमेटियां भी बनाई जाती हैं। उस समय मौके पर बड़े बड़े नेता और अधिकारी पहुंचते हैं। घटना के बाद दोषियों को सजा देने के वायदे किए जाते हैं। लेकिन धीरे धीरे मीडिया के पन्नों से भी घटना की खबरें गायब हो जाती हैं। जांच कमेटियां अपने हिसाब से जांच करती रहती हैं। हैरानीजनक बात हैं पीड़ित परिवार हर पल देखते रहते हैं कि उन्हें कब इंसाफ मिलेगा। इस सब के बावजूद किसी को घटना के दोषियों को सजा नहीं मिल पाती। देश में सिस्टम ऐसा बन गया हैं कि लोगों की हत्या करने वाले, रेप करने वाले, आम जनता का पैसा लुटाने वाले ज्यादातर आरोपी सड़कों पर धूमते रहते हैं। अगर किसी कारण ऐसे अमीर आरोपी अगर कुछ समय के लिये जेल भी चले जाते हैं। वहां भी उनको वीआईपी सुविधा मिलती रहती या फिर सेहत खराब की बात कर अस्पताल में चले जाते हैं। आराम से जमानत लेकर अपने समाज में ऐश की जिंदगी जीते रहते हैं। भ्रष्टाचार सिस्टम के कारण कई-कई साल आरोपियों को सजा नहीं मिलती।