पत्रकारिता में वही कामयाबी मन को सुकून देती है
कुछ देर से यहीं सोच रहा था कि मैं ये क्यों लिख रहा हूं ? मन बहुत बेचैन हो रहा था। इस लिये सच की कथा को लिखने बैठ गया। मैं अकेला नहीं हूं जो अब कुछ ना कुछ लिखने लगा हैं। पत्रकारिता का पेशा चुना हैं तो लिखना छोड़ा नहीं जा सकता। पहले शब्दों को कलम के जरिये उतारा जाता था। अब टेक्नोलोजी का समय हैं तो कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर उंगलियां चलती हैं। शब्दों को आप खुल्लम-खुल्ला नहीं लिखना चाहते तो इशारों में व्यथा बयां कर सकते हैं। जब हर किसी के पास अपनी बात को पहुँचाने या किसी अपराध को उजागर करने में कामयाबी मिल जाती हैं। पत्रकारिता में यही कामयाबी मन को सुकून देती हैं। आज के दौर में पत्रकारिता में भी कई तरह के वर्ग बन चुके हैं। इस में सोशल मीडिया का बहुत योगदान हैं। पत्रकारिता क्षेत्र में बहुत कुछ बदल चुका हैं। आज खुल्लम खुल्ला एक सत्ता पक्ष के लिये लिखकर पैसा कमाने का चलन बढ़ गया है। मतलब देश में पत्रकारों की एक खेप भ्रष्टाचारी सिस्टम की ढाल बन खड़ी हो गई है। जिनकी नज़र में सत्ता पक्ष जो भी कर रहा, वह सब सही है। लेकिन निपक्ष पत्रकारिता हमें ऐसा नहीं सिखाती। भ्रष्टाचारी सिस्टम और सत्ता पक्ष की गतिविधियों को उजागर करने वाले लेखकों व पत्रकारों के लिये यह कंटीली चादर साबित हो रहा हैं। हालात ऐसे बन गये हैं कि पत्रकार ना इस कंटीली चादर पर सही ढ़ंग से सो सकता हैं और ना इस पर बैठ सकता हैं। उसकी हल्की सी हरकत जख्म दे रही हैं। यह जख्म भी शरीर के उन हिस्सों पर हो जाते हैं, उसे किसी को दिखाया भी नहीं जा सकता। सोचने वाली बात यह भी हैं कि वह कंटीली चादर को ही हटा दे। लेकिन जब भी हटाने की कोशिश करता हैं, तो हाथ जख्मी हो जाते हैं। फिर वह लिख नहीं पायेगा।
यहां लिखते-लिखते एक बात दिमाग में आ रही हैं। मेरा मन कर रहा हैं इन में से कुछ पलों को आपसे साझा करुँ। पंजाब में कुछ सालों से नशा तस्कर सिंथेटिक किस्म के नशे को बेच रहे हैं। पंजाब में साल 2013 – 2014 के दौरान हजारों करोड़ के बहुत बड़े ड्रग रैकेट का पर्दाफाश हुआ था। इस मामले ने पंजाब प्रदेश की सियासत को हिलाकर रख दिया था। उस समय पंजाब में अकाली दल और भाजपा के गंठबंधन की सरकार थी। ड्रग रैकेट में कई सत्ताधारियों और विपक्षी सियासतदानों के जुड़े होने के आरोप-प्रत्यारोप सड़कों पर भी गूंजते रहे। इस सब के चलते तफ्तीश के दौरान गिरफ्तारियां और बरामदगी होती रहीं। उस समय 1.30 बिलियन रुपये से ज्यादा की हेरोइन बरामद हुई। तफ्तीश में सामने आया कि यह अरबों का अंतरराष्ट्रीय सिंथेटिक ड्रग्स रैकेट है, जिसमें स्यूडोफेड्रीन और एम्फेटामाइन जैसे केमिकल से पार्टी ड्रग आइस तैयार कर देश-विदेश में सप्लाई की जाती है। पूछताछ में सामने आया कि इसका मास्टरमाइंड पूर्व डीएसपी जगदीश भोला है। इस बीच आयकर विभाग ने ड्रग रैकेट में शामिल एक आरोपी के कोल्ड स्टोर पर छापा मारकर एक डायरी बरामद की, जिसमें कई सियासतदानों और पुलिस अधिकारियों को दी रकम का ब्यौरा था। इस के चलते ईडी ने वह डायरी कब्जे में ले ली। पंजाब में ड्रग रैकेट का यह मामला इतना बड़ा था, इसकी जांच में पुलिस प्रशासन के अलावा चार केंद्रीय एजेंसियां भी शामिल रही। लोकसभा चुनाव के दौरान भी नशों का मुद्दा हावी बना रहा। ऐसे मामलों के पर्दाफाश होने में सूत्रों की अहम भूमिका रहती हैं।
पत्रकार, लेखक या समाज सेवक के रूप में कोई व्यक्ति अपने आपको समर्पित कर देता हैं। ऐसा पत्रकार, लेखक और समाज सेवक समाज के प्रति अपना फर्ज अदा करते हुये आपराधिक गतिविधियों और भ्रष्टाचारी सिस्टम के खिलाफ काम करता रहता हैं। कई पत्रकार सूत्र बन कर खुफ़िया विभागों को माफिया, आपराधिक गतिविधियों में सक्रिय लोगों और भ्रष्टाचारी अधिकारियों के बारे जानकारी मुहैया कराते हैं। इसे खोजी पत्रकार या जासूसी पत्रकार भी कहा जाता है। यह बहुत ही जोखिम भरा रहता हैं। अगर आपराधिक गतिविधियों में सक्रिय लोगों को शंका हो जाये तो उसे और उसके परिवार को नुकसान पहुँचाने की धमकियां भी दी जाती हैं। कई बार छिपकर रहने को मजबूर होना पड़ता है। माफिया के हमलों का भी सामना करना पड़ता है। अपने आपको और परिवार को नुकसान से बचाये रखना होता है। कई मामलों में हालात बिगड़ जाते है। इस सब के बावजूद लिखना छोड़ा नहीं जा सकता। पत्रकरिता में जब न्यूज या आर्टिकल लिखा जाता हैं तो पत्रकार अपने सूत्रों से जानकारी प्राप्त करता हैं। वह कभी भी अपने सूत्रों के बारे में नहीं बता सकता। इस के लिये चाहे उसको कितने भी कष्ट सहने पड़े, प्रशासन कई बार यह जानने के दबाव बनाता हैं। लेकिन इसको गुप्त ही रखा जाना चाहिये, क्योंकि इसमें जान जाने का जोखिम रहता हैं। इसी तरह देश और राज्य के खुफ़िया विभाग पत्रकारों से आपराधिक गीतविधियों में सक्रिय लोगों के बारे में जानकारी लेता हैं। जैसे पत्रकारिता में समाज के बीच में रहने वाले कुछेक लोग जानकारी देने वाले सूत्र की भूमिका निभाते हैं, उसी तरह पत्रकार भी खुफ़िया विभाग और पुलिस उच्चाधिकारियों के लिये सूत्र ही होते हैं। कई बार माफिया और आपराधियों के खिलाफ जानकारी हासिल करने के लिये पत्रकार को गुप्त तरीके से जासूसी जैसा काम भी करना पड़ता हैं। यह तालमेल ही आपराधिक गीतविधियों पर नकेल डालने के काम आता हैं।